मूर्ख कुँवारियों को कैसे उजागर और ख़त्म किया जाता है?

06.08.2019

    संदर्भ के लिए बाइबिल के पद:

    "जो मेरे साथ नहीं वह मेरे विरोध में है, और जो मेरे साथ नहीं बटोरता वह बिखेरता है" (लूका 11:23)।

    "उसका सूप उस के हाथ में है, और वह अपना खलिहान अच्छी रीति से साफ करेगा, और अपने गेहूँ को तो खत्ते में इकट्ठा करेगा,  परन्तु भूसी को उस आग में जलाएगा जो बुझने की नहीं" (मत्ती 3:12)।

    "देखो, वह बादलों के साथ आनेवाला है, और हर एक आँख उसे देखेगी, वरन् जिन्होंने उसे बेधा था वे भी उसे देखेंगे, और पृथ्वी के सारे कुल उसके कारण छाती पीटेंगे" (प्रकाशितवाक्य 1:7)।

    परमेश्वर के अति-उत्कृष्ट वचन:

    फरीसियों ने यीशु का विरोध क्यों किया, क्या तुम लोग उसका कारण जानना चाहते हो? क्या तुम फरीसियों के सार को जानना चाहते हो? वे मसीहा के बारे में कल्पनाओं से भरे हुए थे। इससे ज्यादा और क्या, उन्होंने केवल इस बात पर विश्वास किया कि मसीहा आएगा, मगर जीवन के इस सत्य की खोज नहीं की। और इसलिए, वे आज भी मसीहा की प्रतीक्षा करते हैं, क्यों उन्हें जीवन के मार्ग के बारे में कुछ भी ज्ञान नहीं है, और नहीं जानते कि सत्य का मार्ग क्या है? तुम लोग कैसे कहते हो कि ऐसे मूर्ख, हठधर्मी और अज्ञानी लोग परमेश्वर के आशीष प्राप्त करेंगे? वे मसीहा को कैसे देख सकते हैं? वे यीशु का विरोध करते थे क्योंकि वे पवित्र आत्मा के कार्य की दिशा को नहीं जानते थे, क्योंकि वे यीशु के द्धारा कहे गए सत्य के मार्ग को नहीं जानते थे, और, ऊपर से, क्योंकि उन्होंने मसीहा को नहीं समझा था। और क्योंकि उन्होंने मसीहा को कभी नहीं देखा था, और कभी भी मसीहा के साथ नहीं रहे थे, उन्होंने सिर्फ़ मसीहा के नाम को खोखली श्रद्धांजलि देने की गलती की जबकि किसी न किसी ढंग से मसीहा के सार का विरोध करते रहे। ये फरीसी सार रूप से हठधर्मी एवं अभिमानी थे और सत्य का पालन नहीं करते थे। परमेश्वर में उनके विश्वास का सिद्धांत है: इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम्हारा उपदेश कितना गहरा है, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि तुम्हारा अधिकार कितना ऊँचा है, तुम मसीह नहीं हो जब तक तुम्हें मसीहा नहीं कहा जाता। क्या ये दृष्टिकोण हास्यास्पद और मूर्खतापूर्ण नहीं हैं? मैं तुम लोगों से पुनः पूछता हूँ: मान लीजिए कि तुम लोगों में यीशु के बारे में थोड़ी सी भी समझ नहीं है, तो क्या तुम लोगों के लिए उन गलतियों को करना अत्यंत आसान नहीं है जो बिल्कुल आरंभ के फरीसियों ने की थी? क्या तुम सत्य के मार्ग को जानने के योग्य हो? क्या तुम सचमुच में यह विश्वास दिला सकते हो कि तुम ईसा का विरोध नहीं करोगे? क्या तुम पवित्र आत्मा के कार्य का अनुसरण करने के योग्य हो? यदि तुम नहीं जानते हो कि क्या तुम ईसा का विरोध करोगे, तो मेरा कहना है कि तुम पहले से ही मौत के कगार पर जी रहे हो। जो लोग मसीहा को नहीं जानते थे वे सभी यीशु का विरोध करने में, यीशु को अस्वीकार करने में, उन्हें बदनाम करने में सक्षम थे। जो लोग यीशु को नहीं समझते हैं वे सब उसे अस्वीकार करने एवं उन्हें बुरा भला कहने में सक्षम हैं। इसके अलावा, वे यीशु के लौटने को शैतान के द्वारा दिए जाने वाले धोखे के समान देखने में सक्षम हैं और अधिकांश लोग देह में लौटने की यीशु की निंदा करेंगे। क्या इस सबसे तुम लोगों को डर नहीं लगता है? जिसका तुम लोग सामना करते हो वह पवित्र आत्मा के विरोध में ईशनिंदा होगी, कलीसियाओं के लिए पवित्र आत्मा के वचनों का विनाश होगा और यीशु के द्वारा व्यक्त किए गए समस्त को ठुकराना होगा। यदि तुम लोग इतने संभ्रमित हो तो यीशु से क्या प्राप्त कर सकते हो? यदि तुम लोग हठधर्मिता से अपनी गलतियों को मानने से इनकार करते हो, तो श्वेत बादल पर यीशु के देह में लौटने पर तुम लोग यीशु के कार्य को कैसे समझ सकते हो? यह मैं तुम लोगों को बताता हूँ: जो लोग सत्य को स्वीकार नहीं करते हैं, मगर अंधों की तरह यीशु के श्वेत बादलों पर आगमन का इंतज़ार करते हैं, निश्चित रूप से पवित्र आत्मा के विरोध में ईशनिंदा करेंगे, और ये वे प्रजातियाँ हैं जो नष्ट कर दी जाएँगीं। तुम लोग सिर्फ़ यीशु के अनुग्रह की कामना करते हो, और सिर्फ़ स्वर्ग के सुखद राज्य का आनंद लेना चाहता हो, मगर जब यीशु देह में लौटा, तो तुमने यीशु के द्वारा कहे गए वचनों का कभी भी पालन नहीं किया, और यीशु के द्वारा व्यक्त किये गए सत्य को कभी भी ग्रहण नहीं किया है। यीशु के एक श्वेत बादल पर वापस आने के तथ्य के बदले में तुम लोग क्या थामें रखना चाहोगे? क्या वही ईमानदारी जिसमें तुम लोग बार-बार पाप करते रहते हो, और फिर बार-बार उनकी स्वीकारोक्ति करते हो? एक श्वेत बादल पर वापस आने वाले यीशु के लिए तुम बलिदान में क्या अर्पण करोगे? क्या कार्य के वे वर्ष जिनकी तुम लोग स्वयं सराहना करते हो? लौट कर आये यीशु को तुम लोगों पर विश्वास कराने के लिए तुम लोग किस चीज को थाम कर रखोगे? क्या वह आपका अभिमानी स्वभाव है,जो किसी भी सत्य का पालन नहीं करता है?

"जब तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देख रहे होगे ऐसा तब होगा जब परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को नये सिरे से बना चुका होगा" से

    उनके लिये मेरे अस्तित्व का दायरा मात्र बाइबल तक ही सीमित है। उनके लिए, मैं बस बाइबल के सामान ही हूँ; बाइबल के बिना मैं भी नहीं हूँ, और मेरे बिना बाइबल भी नहीं है। वे मेरे अस्तित्व या क्रियाओं पर कोई भी ध्यान नहीं देते, परन्तु इसके बजाय, पवित्रशास्त्र के हर एक वचन पर बहुत अधिक और विशेष ध्यान देते हैं, और उनमें से कई एक तो यहाँ तक मानते हैं कि मुझे मेरी चाहत के अनुसार, ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहिए जब तक वह पवित्रशास्त्र के द्वारा पहले से बताया गया न हो। वे पवित्रशास्त्र को बहुत अधिक महत्त्व देते हैं। यह कहा जा सकता है कि वे वचनों और उक्तियों को बहुत अधिक महत्वपूर्ण तरीकों से देखते हैं, इस हद कि हर एक वचन जो मैं बोलता हूं उसकी तुलना बाइबल की आयतों के साथ करते हैं, और उसका उपयोग मुझे दोषी ठहराने के लिए करते हैं। वे जिसकी खोज कर रहे हैं वह मेरे अनुकूल होने का रास्ता या ढंग नहीं है, या सत्य के अनुकूल होने का रास्ता नहीं है, बल्कि बाइबल के वचनों की अनुकूलता में होने का रास्ता है, और वे विश्वास करते हैं कि कोई भी बात जो बाइबल के अनुसार नहीं है, बिना किसी अपवाद के, मेरा कार्य नहीं है। क्या ऐसे लोग फरीसियों के कर्तव्यनिष्ठ वंशज नहीं हैं? यहूदी फरीसी यीशु को दोषी ठहराने के लिए मूसा की व्यवस्था का उपयोग करते थे। उन्होंने उस समय के यीशु के अनुकूल होने की खोज नहीं की, बल्कि नियम का अक्षरशः पालन कर्मठतापूर्वक किया, इस हद तक किया कि अंततः उन्होंने निर्दोष यीशु को, पुराने नियम की व्यवस्था का पालन न करने और मसीहा न होने का आरोप लगाते हुए, क्रूस पर चढ़ा दिया। उनका सारतत्व क्या था? क्या यह ऐसा नहीं था कि उन्होंने सत्य के अनुकूल होने के मार्ग की खोज नहीं की? उनमें पवित्रशास्त्र के हर एक वचन का जुनून सवार हो गया था, जबकि मेरी इच्छा और मेरे कार्य के चरणों और कार्य की विधियों पर कोई भी ध्यान नहीं दिया। ये वे लोग नहीं थे जो सत्य को खोज रहे थे, बल्कि ये वे लोग थे जो कठोरता से पवित्रशास्त्र के वचनों का पालन करते थे; ये वे लोग नहीं थे जो सत्य की खोज करते थे, बल्कि ये वे लोग थे जो बाइबल में विश्वास करते थे। दरअसल वे बाइबल के रक्षक थे। बाइबल के हितों की सुरक्षा करने, और बाइबल की मर्यादा को बनाये रखने, और बाइबल की प्रतिष्ठा को बचाने के लिए, वे यहाँ तक गिर गए कि उन्होंने दयालु यीशु को भी क्रूस पर चढ़ा दिया। यह उन्होंने सिर्फ़ बाइबल की रक्षा करने के लिए, और लोगों के हृदय में बाइबल के हर एक वचन के स्तर को बनाये रखने के लिए ही किया। इस प्रकार उन्होंने यीशु को, जिसने पवित्रशास्त्र के सिद्धान्त का पालन नहीं किया, मृत्यु दंड देने के लिये अपने भविष्य और पापबलि को त्यागना बेहतर समझा। क्या वे पवित्रशास्त्र के हर एक वचन के नौकर नहीं थे?

    और आज के लोगों के विषय में क्या कहें? मसीह सत्य को बताने के लिए आया है, फिर भी वे निश्चय ही स्वर्ग में प्रवेश प्राप्त करने और अनुग्रह को पाने के लिए उसे मनुष्य के मध्य में से बाहर निकाल देंगे। वे निश्चय ही बाइबल के हितों की सुरक्षा करने के लिए सत्य के आगमन को भी नकार देंगे, और निश्चय ही वापस देह में आये हुए मसीह को बाइबल के अस्तित्व को अनंतकाल तक सुनिश्चित करने के लिए फिर से सूली पर चढ़ा देंगे। कैसे मनुष्य मेरे उद्धार को ग्रहण कर सकता है, जब उसका हृदय इतना अधिक द्वेष से भरा है, और मेरे प्रति उसका स्वभाव ही इतना विरोध से भरा है?

"तुम्हें मसीह की अनुकूलता में होने के तरीके की खोज करनी चाहिए" से

    वे जो सिर्फ़ बाइबल के वचनों पर ही ध्यान देते हैं, जो सत्य के बारे में या मेरे नक्शे-कदम को खोजने के बारे में बेफ़िक्र हैं-वे मेरे विरुद्ध हैं, क्योंकि वे मुझे बाइबल के अनुसार सीमित बना देते हैं, और मुझे बाइबल में ही सीमित कर देते हैं, और वे ही मेरे बहुत अधिक निंदक हैं। ऐसे लोग मेरे सामने कैसे आ सकते हैं? वे मेरे कार्यों, या मेरी इच्छा, या सत्य पर कुछ भी ध्यान नहीं देते हैं, बल्कि वचनों से ग्रस्त हो जाते हैं, वचन जो मार देते हैं। कैसे ऐसे लोग मेरे अनुकूल हो सकते हैं?

"तुम्हें मसीह की अनुकूलता में होने के तरीके की खोज करनी चाहिए" से

    कुछ लोग सत्य में आनन्द नहीं मनाते हैं, न्याय की तो ही दूर है। बल्कि वे शक्ति और धन में आनन्द मनाते हैं; इस प्रकार के लोग मिथ्याभिमानी समझे जाते हैं । ये लोग अनन्य रूप से संसार के प्रभावशाली सम्प्रदायों तथा सेमिनारियों से निकलने वाले पादरियों और शिक्षकों की खोज में लगे रहते हैं। सत्य के मार्ग को स्वीकार करने के बावजूद, वे उलझन में फंसे रहते हैं और अपने तुम को पूरी तरह से समर्पित करने में असमर्थ होते हो। वे परमेश्वर के लिए बलिदान की बात करते हैं, परन्तु उनकी आखें महान पादरियों और शिक्षकों पर केन्द्रित रहती हैं और मसीह को किनारे कर दिया जाता है। उनके हृदयों में प्रसिद्धि, वैभव और प्रतिष्ठा रहती है। उन्हें बिल्कुल विश्वास नहीं होता कि ऐसा छोटा-सा आदमी इतनोंपर विजय प्राप्त कर सकता है, यह कि वह इतना साधारण होकर भी लोगों को सिद्ध बनाने के योग्य है। वे बिल्कुल विश्वास नहीं करते कि ये धूल में पड़े मामूली लोग और घूरे पर रहने वाले ये साधारण मनुष्य परमेश्वर के द्वारा चुने गए हैं। वे मानते हैं कि यदि ऐसे लोग परमेश्वर के उद्धार की योजना के लक्ष्य रहे होते, तो स्वर्ग और पृथ्वी उलट-पुलट हो जाते और सभी लोग ठहाके लगाकर हंसते। वे विश्वास करते हैं कि यदि परमेश्वर ऐसे सामान्य लोगों को सिद्ध बना सकता है, तो वे सभी महान लोग स्वयं में परमेश्वर बन जाते। उनके दृष्टिकोण अविश्वास से भ्रष्ट हो गए हैं; दरअसल, अविश्वास से कोसों दूर वे बेहूदा जानवर हैं। क्योंकि वे केवल हैसियत, प्रतिष्ठा और शक्ति का मूल्य जानते हैं; वे विशाल समूहों और सम्प्रदायों को ही ऊंचा सम्मान देते हैं। उनकी दृष्टि में उनका कोई सम्मान नहीं है जिनकी अगुवाई मसीह कर रहे हैं। वे सीधे तौर पर विश्वासघाती हैं जिन्होंने मसीह से, सत्य से और जीवन से अपना मुंह मोड़ लिया है।

    तुम मसीह की विनम्रता की तारीफ नहीं करते हो, बल्कि उन झूठे चरवाहों की करते हो जो विशेष हैसियत रखते हैं। तुम मसीह की सुन्दरता या ज्ञान से प्रेम नहीं करते हो, बल्कि उन अधम लोगों से करते हो जो घृणित संसार से जुड़े हैं। तुम मसीह के दुख पर हंसते हो, जिसके पास अपना सिर रखने तक की जगह नहीं, परन्तु उन मुर्दों की तारीफ करते हो जो भेंट झपट लेते हैं और व्यभिचारी का जीवन जीते हैं। तुम मसीह के साथ-साथ कष्ट सहने को तैयार नहीं , परन्तु उन धृष्ट मसीह विरोधियों की बाहों में प्रसन्नता से जाते हो, हालांकि वे तुम्हें सिर्फ देह, अक्षरज्ञान और अंकुश ही दे सकते हैं अभी भी तुम्हारा हृदय उनकी ओर, उनकी प्रतिष्ठा की ओर, सभी शैतानों के हृदय में उनकी हैसियत, उनके प्रभाव, उनके अधिकार की ओर लगा रहता है, फिर भी तुम विरोधी स्वभाव बनाए रखते हो और मसीह के कार्य को स्वीकार नहीं करते हो। इसलिए मैं कहता हूं कि तुम्हें मसीह को स्वीकार करने का विश्वास नहीं है।

"क्या तुम परमेश्वर के एक सच्चे विश्वासी हो?" से

    तुम लोगों की सत्यनिष्ठा सिर्फ़ वचनों में है, तुम लोगों का ज्ञान सिर्फ़ बौद्धिक और वैचारिक है, तुम लोगों की मेहनत सिर्फ स्वर्ग की आशीषें पाने के लिए है, और इसलिए तुम लोगों का विश्वास अवश्य ही किस प्रकार का हो सकता है? आज भी, तुम लोग सत्य के प्रत्येक वचन को एक बहरे कान से ही सुनते हो। तुम लोग नहीं जानते हो कि परमेश्वर क्या है, तुम लोग नहीं जानते हो कि ईसा क्या है, तुम लोग नहीं जानते हो कि यहोवा का आदर कैसे करें, तुम लोग नहीं जानते हो कि कैसे पवित्र आत्मा के कार्य में प्रवेश किया जाए, और तुम लोग नहीं जानते हो कि परमेश्वर के स्वंय के कार्य और मनुष्य के धोखे के बीच कैसे भेद करें। तुम परमेश्वर के द्वारा व्यक्त किये गए किसी सत्य के वचन की केवल निंदा करना ही जानते हो जो तुम्हारे विचार के अनुरूप नहीं होता है। तुम्हारी विनम्रता कहाँ है? तुम्हारी आज्ञाकारिता कहाँ है? तुम्हारी सत्यनिष्ठा कहाँ है? सत्य को खोजने की तुम्हारी इच्छा कहाँ है? परमेश्वर के बारे में तुम्हारा आदर कहाँ है? मैं तुम लोगों बता दूँ, कि जो परमेश्वर में संकेतों की वजह से विश्वास करते हैं वे निश्चित रूप से उस श्रेणी के होंगे जो विनाश को झेलेगी। वे जो देह में लौटे यीशु के वचनों को स्वीकार करने में अक्षम हैं वे निश्चित रूप से नरक के वंशज, महान फ़रिश्ते के वंशज हैं, उस श्रेणी के हैं जो अनंत विनाश के अधीन की जाएगी। कई लोग मैं क्या कहता हूँ इसकी परवाह नहीं करते हैं, किंतु मैं ऐसे हर तथाकथित संत को बताना चाहता हूँ जो यीशु का अनुसरण करते हैं, कि जब तुम लोग यीशु को एक श्वेत बादल पर स्वर्ग से उतरते हुए अपनी आँखों से देखो, तो यह धार्मिकता के सूर्य का सार्वजनिक प्रकटन होगा। शायद वह तुम्हारे लिए एक बड़ी उत्तेजना का समय होगा, मगर तुम्हें पता होना चाहिए कि जिस समय तुम यीशु को स्वर्ग से उतरते हुए देखोगे तो यही वह समय भी होगा जब तुम दण्ड दिए जाने के लिए नीचे नरक चले जाओगे। यह परमेश्वर की प्रबंधन योजना की समाप्ति की घोषणा होगी, और यह तब होगा जब परमेश्वर सज्जन को पुरस्कार और दुष्ट को दण्ड देगा। क्योंकि परमेश्वर का न्याय मनुष्य के संकेतों को देखने से पहले ही समाप्त हो चुका होगा, जब वहाँ सिर्फ़ सत्य की अभिव्यक्ति ही होगी। वे जो सत्य को स्वीकार करते हैं तथा संकेतों की खोज नहीं करते हैं और इस प्रकार शुद्ध कर दिए जाते हैं, वे परमेश्वर के सिंहासन के सामने लौट चुके होंगे और सृष्टिकर्ता के आलिंगन में प्रवेश कर चुके होंगे। सिर्फ़ वे ही जो इस विश्वास में बने रहते हैं कि "यीशु जो श्वेत बादल पर सवारी नहीं करता है एक झूठा मसीह है" अनंत दण्ड के अधीन कर दिए जाएँगे, क्योंकि वे सिर्फ़ उस यीशु में विश्वास करते हैं जो संकेतों को प्रदर्शित करता है, परन्तु उस यीशु को स्वीकार नहीं करते हैं जो गंभीर न्याय की घोषणा करता है और जीवन में सच्चे मार्ग को बताता है। और इसलिए केवल यही हो सकता है कि जब यीशु खुलेआम श्वेत बादल पर वापस लौटें तो वह उसके साथ व्यवहार करें। वे बहुत हठधर्मी, अपने आप में बहुत आश्वस्त, बहुत अभिमानी हैं। ऐसे अधम लोग यीशु द्वारा कैसे पुरस्कृत किए जा सकते हैं? यीशु का लौटना उन लोगों के लिए एक महान उद्धार है जो सत्य को स्वीकार करने में सक्षम हैं, परन्तु उनके लिए जो सत्य को स्वीकार करने में असमर्थ हैं यह निंदा का एक संकेत है।

"जब तुम यीशु के आध्यात्मिक शरीर को देख रहे होगे ऐसा तब होगा जब परमेश्वर स्वर्ग और पृथ्वी को नये सिरे से बना चुका होगा" से

स्रोत:सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया

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