लाज़र का पुनरूत्थान परमेश्वर की महिमा करता है

15.05.2020

     यूहन्ना 11:43-44 यह कहकर उसने बड़े शब्द से पुकारा, "हे लाज़र, निकल आ!" जो मर गया था वह कफन से हाथ पाँव बँधे हुए निकल आया, और उसका मुँह अँगोछे से लिपटा हुआ था। यीशु ने उनसे कहा, "उसे खोल दो और जाने दो।"

     इसके बाद, आओ हम इस अंश पर नज़र डालें: लाज़र का पुनरूत्थान परमेश्वर की महिमा करता है। 

     इस अंश को पढ़ने के बाद इसका तुम लोगों के ऊपर क्या प्रभाव पड़ा? प्रभु यीशु के द्वारा किए गए इस चमत्कार का महत्व पहले वाले से बहुत अधिक था क्योंकि कोई भी चमत्कार किसी मरे हुए इंसान को क़ब्र से बाहर लाने से बढ़कर विस्मयकारक नहीं हो सकता है। प्रभु यीशु का ऐसा कुछ करना उस युग में बहुत ही ज़्यादा महत्वपूर्ण था। क्योंकि परमेश्वर देहधारी हो गया था, इसलिए लोग केवल उसके शारीरिक रूप-रंग, उसके व्यावहारिक पक्ष, और उसके महत्वहीन पक्ष को ही देख सकते थे। भले ही कुछ लोगों ने उसके कुछ गुणों या कुछ ताक़तों को देखा और समझा जो उसमें दिखाई देते थे, फिर भी कोई नहीं जानता था कि प्रभु यीशु कहाँ से आया, उसका सार वास्तव में कौन है, और वह वास्तव में और अधिक क्या कर सकता है। यह सब कुछ मनुष्यजाति के लिए अज्ञात था। बहुत से लोग इस चीज़ का प्रमाण चाहते थे, और सत्य को जानना चाहते थे। क्या अपनी पहचान को साबित करने के लिए परमेश्वर कुछ कर सकता था? परमेश्वर के लिए, यह आसान बात थी-बच्चों का खेल था। वह अपनी पहचान और सार को साबित करने के लिए कहीं पर भी, किसी भी समय कुछ भी कर सकता था, परन्तु परमेश्वर ने चीज़ों को एक योजना के साथ, और चरणों में किया था। उसने चीज़ों को विवेकहीनता से नहीं किया; उसने ऐसा कुछ करने के लिए जो मनुष्यजाति के देखने के लिए अर्थपूर्ण हो सही समय, और सही अवसर का इंतज़ार किया। इसने उसके अधिकार और उसकी पहचान को साबित किया। इसलिए तब, क्या लाज़र का पुनरूत्थान प्रभु यीशु की पहचान को प्रमाणित कर सका था? आओ हम पवित्रशास्त्र के इस अंश को देखें: "और यह कहकर, उसने बड़े शब्द से पुकारा, हे लाज़र, निकल आ! जो मर गया था निकल आया...।" जब प्रभु यीशु ने ऐसा किया, उसने बस एक बात कहीः "हे लाज़र, निकल आ!" तब लाजर अपनी क़ब्र से बाहर निकल आया-यह प्रभु के द्वारा बोली गयी एक पंक्ति के कारण पूरा हुआ था। इस अवधि के दौरान, प्रभु यीशु ने कोई वेदी स्थापित नहीं की, और उसने कोई अन्य गतिविधि नहीं की। उसने बस एक बात कही। क्या इसे एक चमत्कार कहा जाएगा या एक आज्ञा? या यह किसी प्रकार की जादूगरी थी? सतही तौर पर, ऐसा प्रतीत होता है कि इसे एक चमत्कार कहा जा सकता है, और यदि तुम लोग इसे आधुनिक परिप्रेक्ष्य से देखो तो, निस्संदेह तुम लोग इसे तब भी एक चमत्कार ही कह सकते हो। हालाँकि, इसे किसी आत्मा को मृत से वापस बुलाने का जादू निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है, और कोई जादू-टोना तो बिल्कुल भी नहीं। यह कहना सही है कि यह चमत्कार सृजनकर्ता के अधिकार का अत्यधिक सामान्य, एक छोटा सा प्रदर्शन था। यह परमेश्वर का अधिकार, और उसकी क्षमता है। परमेश्वर के पास किसी व्यक्ति के मरने का अधिकार है, और उसकी आत्मा का उसके शरीर को छोड़ने और अधोलोक में, या जहाँ कहीं भी उसे जाना चाहिए, भेजने का अधिकार है। कोई कब मरता है, और मृत्यु के बाद वह कहाँ जाता है-यह सब परमेश्वर के द्वारा निर्धारित किया जाता है। वह इसे किसी भी समय और कहीं भी कर सकता है। वह मनुष्यों, घटनाओं, पदार्थों, अंतरिक्ष, या स्थान के द्वारा विवश नहीं होता है। यदि वह इसे करना चाहता है तो वह इसे कर सकता है, क्योंकि सभी चीज़ें और जीवित प्राणी उसके शासन के अधीन हैं, और सभी चीज़ें उसके वचन, और उसके अधिकार के द्वारा जीवित रहते हैं और मरते हैं। वह एक मृत व्यक्ति का पुनरुत्थान कर सकता है-यह भी कुछ ऐसा है जिसे वह किसी भी समय, कहीं भी कर सकता है। यह वह अधिकार है जो केवल सृजनकर्ता के पास है।

      जब प्रभु यीशु ने लाज़र को मृतक में से वापस लाने जैसा कुछ किया, तो उसका उद्देश्य मनुष्यों और शैतान को दिखाने के लिए, तथा मनुष्य और शैतान को जानने देने के लिए प्रमाण देना था कि मनुष्यजाति की सभी चीज़ें, और मनुष्यजाति का जीवन और उसकी मृत्यु परमेश्वर के द्वारा निर्धारित होते हैं, और यह कि भले ही वह देहधारी हो गया था, फिर भी हमेशा की तरह, उसने इस भौतिक संसार को जिसे देखा जा सकता है और साथ ही आध्यात्मिक संसार को जिसे मनुष्य देख नहीं सकते हैं, अपने नियंत्रण में बनाए रखा था। यह इसलिए था कि मनुष्य और शैतान जान लें कि मनुष्यजाति का सब कुछ शैतान के नियंत्रण में नहीं है। यह परमेश्वर के अधिकार का प्रकाशन और प्रदर्शन था, और यह सभी चीज़ों को संदेश देने का परमेश्वर का एक तरीका भी था कि मनुष्यजाति का जीवन और उनकी मृत्यु परमेश्वर के हाथों में है। प्रभु यीशु के द्वारा लाज़र का पुनरूत्थान-इस प्रकार का दृष्टिकोण मनुष्यजाति को शिक्षा और निर्देश देने के लिए सृजनकर्ता का एक तरीका था। यह एक ठोस कार्य था जिसमें उसने मनुष्यजाति को निर्देश देने, और मनुष्यों के भरण पोषण के लिए अपनी क्षमता और अधिकार का उपयोग किया था। सभी चीज़ों के उसके नियंत्रण में होने के सत्य को मनुष्यजाति को देखने देने का यह सृजनकर्ता का एक वचनों से रहित तरीका था। यह व्यावहारिक कार्यों के माध्यम से मनुष्यजाति को यह बताने का उसका एक तरीका था कि उसके माध्यम के अलावा कोई उद्धार नहीं है। मनुष्यजाति को इस प्रकार का मूक निर्देश देने का उसका उपाय सर्वदा बने रहता है-यह अमिट है, और इसने मनुष्य के हृदय को एक आघात और प्रबुद्धता दी है जो कभी धूमिल नहीं हो सकती है। लाज़र के पुनरूत्थान ने परमेश्वर की महिमा की-इसका परमेश्वर के हर एक अनुयायी पर एक गहरा प्रभाव पड़ा है। यह ऐसे प्रत्येक व्यक्ति में जो गहराई से इस घटना को समझता है, इस समझ को, दर्शन को मज़बूती से जड़ देता है कि केवल परमेश्वर ही मनुष्यजाति के जीवन और मृत्यु पर नियंत्रण कर सकता है। यद्यपि परमेश्वर के पास इस प्रकार का अधिकार है, और यद्यपि उसने मनुष्यजाति के जीवन और मृत्यु के ऊपर अपनी सर्वोच्चता के बारे में लाज़र के पुनरूत्थान के जरिए एक सन्देश भेजा था, फिर भी यह उसका प्राथमिक कार्य नहीं था। परमेश्वर कोई कार्य बिना किसी आशय के कभी नहीं करता है। हर एक चीज़ जो वह करता है उसका बड़ा महत्व है; यह सब एक अति उत्कृष्ट निधि है। वह किसी व्यक्ति के क़ब्र से बाहर आने को अपने कार्य का प्राथमिक या एकमात्र उद्देश्य या चीज़ बिल्कुल भी नहीं बनाएगा। परमेश्वर ऐसा कुछ भी नहीं करता है जिसका कोई आशय ना हो। लाज़र का एक पुनरूत्थान परमेश्वर के अधिकार को प्रदर्शित करने के लिए पर्याप्त था। यह प्रभु यीशु की पहचान को साबित करने के लिए पर्याप्त था। इसीलिए प्रभु यीशु ने इस प्रकार के चमत्कार को फिर से नहीं दोहराया था। परमेश्वर अपने स्वयं के सिद्धांतों के अनुसार चीज़ों को करता है। मानवीय भाषा में, ऐसा होगा कि परमेश्वर गंभीर कार्य के बारे में सचेत है। अर्थात्, जब परमेश्वर चीज़ों को करता है तब वह अपने कार्य के उद्देश्य से भटकता नहीं है। वह जानता है कि इस चरण में वह कौन सा कार्य करना चाहता है, वह क्या पूरा करना चाहता है, और वह कड़ाई से अपनी योजना के अनुसार कार्य करेगा। यदि किसी भ्रष्ट व्यक्ति के पास इस प्रकार की क्षमता होती, तो वह बस अपनी योग्यता को प्रदर्शित करने के तरीकों के बारे में ही सोच रहा होता ताकि अन्य लोगों को पता चल जाए कि वह कितना भयंकर है, जिससे वे उसके सामने झुक जाएँ, ताकि वह उन्हें नियन्त्रित कर सके और उन्हें निगल सके। यही वह बुराई है जो शैतान से आती है-इसे भ्रष्टता कहते हैं। परमेश्वर का इस प्रकार का स्वभाव नहीं है, और उसका इस प्रकार का सार नहीं है। चीज़ों को करने में उसका उद्देश्य अपना दिखावा करना नहीं है, बल्कि मनुष्यजाति को और अधिक प्रकाशन और मार्गदर्शन प्रदान करना है, इसलिए लोग बाइबल में इस तरह की चीज़ों के बहुत कम ही उदाहरणों को देखते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि प्रभु यीशु की क्षमताएँ सीमित थीं, या वह इस प्रकार की चीज़ को नहीं कर सकता था। केवल इतना ही है कि परमेश्वर ऐसा नहीं करना चाहता था, क्योंकि प्रभु यीशु का लाज़र का पुनरूत्थान करने का बहुत ही व्यावहारिक महत्व था, और साथ ही क्योंकि परमेश्वर के देहधारी होने का प्राथमिक कार्य चमत्कार करना नहीं था, यह मुर्दों को जीवित करना नहीं था, बल्कि यह मनुष्यजाति के छुटकारे के कार्य को करना था। इसलिए, प्रभु यीशु के द्वारा पूर्ण किए गए कार्य में से अधिकांश लोगों को शिक्षा देना, उनका भरण पोषण करना, और उनकी सहायता करना, और ऐसी चीज़ें जैसे लाज़र का पुनरूत्थान करना उस सेवकाई का मात्र एक छोटा सा अंश था जिसे प्रभु यीशु ने कार्यान्वित किया था। उससे भी अधिक, तुम लोग कह सकते हो कि "दिखावा करना" परमेश्वर के सार का एक भाग नहीं है, इसलिए अधिक चमत्कारों को नहीं दिखाना जानबूझकर किया गया संयम नहीं था, न ही यह पर्यावरणीय सीमाओं के कारण था, और यह क्षमता की कमी तो बिल्कुल भी नहीं था।

     जब प्रभु यीशु ने लाज़र को मृत से वापस जीवित किया, तो उसने एक पंक्ति का उपयोग किया: "हे लाज़र, निकल आ!" उसने इसके अलावा कुछ नहीं कहा-ये शब्द क्या दर्शाते हैं? ये दर्शाते हैं कि परमेश्वर बोलने के द्वारा कुछ भी पूरा कर सकता है, जिसमें एक मरे हुए इंसान को जीवित करना भी शामिल है। जब परमेश्वर ने सभी चीज़ों का सृजन कर लिया, जब उसने जगत को बना लिया, तो उसने ऐसा अपने वचनों-मौखिक आज्ञाओं, अधिकार युक्त वचनों का उपयोग करके किया था, और ठीक उसी तरह सभी चीज़ों का सृजन हुआ था। यह उसी तरह से पूरा हुआ था। प्रभु यीशु के द्वारा कही गयी यह एक मात्र पंक्ति परमेश्वर के द्वारा उस समय कहे गए वचनों के समान थी जब उसने आकाश और पृथ्वी और सभी चीज़ों का सृजन किया था; उसमें परमेश्वर के समान अधिकार, और सृजनकर्ता के समान क्षमता थी। परमेश्वर के मुँह के वचनों की वजह से सभी चीज़ें बनी और डटी थी, और बिल्कुल वैसे ही, जैसे प्रभु यीशु के मुँह के वचनों की वजह से लाज़र अपनी क़ब्र से बाहर आया। यह परमेश्वर का अधिकार था, जो उसके देहधारी देह में प्रदर्शित और साकार हुआ था। इस प्रकार का अधिकार और क्षमता सृजनकर्ता, और मनुष्य के पुत्र से संबंधित थी जिसमें सृजनकर्ता साकार हुआ था। यही वह समझ है जो परमेश्वर के द्वारा लाज़र को मृत से वापस लाकर मनुष्यजाति को सिखायी गयी है। इस विषय पर बस इतना ही। इसके बाद, आओ हम पवित्रशास्त्र को पढ़ें।

- "वचन देह में प्रकट होता है" से उद्धृत

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